Monday, November 22, 2010

बेमौसम बदले मौसम ने दिवाना कर दिया...

इस हक़ीकत को झुठलाना खुद के साथ भी नाइंसाफी होगी कि बिन बुलाए, बैमौसम आए..बारिश ने प्रकृति को सुहाना बना दिया और दिल को दिवाना....लेकिन दिल के कहीं उदास कोने में बैठी एक कठोर सच्चाई पहले झुंझलाई फिर एक पीड़ा भरी गान गुनगुनाई जिसमें मेघ से उसके प्रताड़ना की उलाहना भी है और प्रणय निवेदन भी...सालों से बारिश की बेरुखी ने न जाने कितने आशियानों की ज़िंदगी


बरसो मेघ झमककर बरसो....
बिजली संग मटककर बरसो
आंख सहमकर दिल भर जाए...
ऐसा रंग चमककर बरसो...
सूखे खेत, हैं ताल भी सूखे...
बिन पानी तालाब भी भूखे...
भर जाए पेट और बह जाए पानी
ऐसा आज बहक कर बरसो....
बरसो मेघ झमककर बरसो...
बिजली संग चमककर बरसो....
जंगल जल गए...नदियां सूखीं...
राह निहारत तुझसे रुठीं...
अब न सताओ इन्हे मनाओ
इनकी दर महक कर बरसो
बरसो मेघ झमककर बरसो