Wednesday, October 27, 2010

चलिए आज आपको अपने गांव लेकर चलता हूं..

चलिए आपको अपने गांव लेकर चलता हूं...
पतली पगडंडी,घनी अमराइयों की छांव लेकर चलता हूं..
भोले की नगरी से 10 मील दूर ही है घर मेरा...
थून्ही है गांव चंदवक कस्बा ही शहर मेरा..
वही बाजार जहां चप्पल ना मिले बाटा की..
लेकिन हर रोज जहां बोली लगती टाटा की..
.....
.....क्रमशः जारी है...

अपना गांव भी अब बेगाना हो गया...


अब अपना गांव वो पुराना नहीं लगता...
किसी पिकनिक स्पॉट सा वो मौसियाना नहीं लगता
शादियां भी तो अब होती हैं हड़बड़ाहट में
बरगद के नीचे वो शामियाना नहीं लगता।
पोखरी गांव की आबादी में तब्दील हुई,
ताल बंटवारे के खेतों में हलाल हुआ
कोट कटकर जब परधान की दालान बनी
सुना कि इसको लेकर थोड़ा गांव में बवाल हुआ..
चार जो पेड़ थे पीपल के चारों कोनों पर..
हां वहीं पेड़ जिसमें लोग जल चढ़ाते थे
एक वो नीम का भी पेड़ था जिसके नीचे,
मुंशी जी डंडा लेकर हमे क..ख..ग..पढ़ाते थे..
कट गए पेड़ वो सारे कि एक झटके में..
बचपन में देखते जिस पर कुछ मिट्टी के मटके में
जानते हैं कि हुआ हश्र क्या उन पेड़ों का..
जल गए धूंधू कर सुनील सिंह के भट्टे में..
ऐसा नहीं था कि उन पेड़ों की उम्र पूरी थी..
या वो पेड़ गांव की विकास को अखरते थे..
ये अलग बात है कि बुढ़े बुढ़िया भी यूं बस चुप ही रहे..
शायद कुछ लोग थे जो सुनील सिंह से डरते थे..
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....क्रमशः जारी है...

इसी शहर ने मेरी पहचान मुझसे छीन लिया


मेरे शहर ने मेरी पहचान मुझसे छीन लिया..
और..नई चलन ने मेरी ज़ुबान मुझसे छीन लिया..
पेट की भूख ने कुछ इस क़दर दस्तक दे दी..
ग़ुम मुस्कान हुई...और ईमान मुझसे छीन लिया..
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नई पीढ़िया ग़ुम हुई नए तरानों में...
पुराने किस्से नहीं रह गए अफ़सानों में..
नानी की कहानियों की बात भी अब जाने दीजै,
गांव के बोल भी अब खो गए वीरानों में..
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.....क्रमशः जारी है....

Sunday, October 3, 2010

पलामू में भूख ने ली एक और जान

सूखे से जूझ रहे झारखंड में किसानों की स्थिति बदहाल हो चुकी है...44 सालों में 19 बार अकाल जैसे हालात का सामना कर पलामू के किसान बेगार ही नहीं बेजार भी हो चुके हैं...गरीब किसान दाने दाने को मोहताज हैं...बिन रोटी चार किसानों की मौत हो चुकी है...जबकि सियासत दां सूखे और अकाल को लेकर राजनीति की रोटी सेंक रहे हैं.... बिन कपड़े के भूखे पेट खड़े ये बच्चे अवाक़ है...किसी अनहोनी को भांपती ये बच्चियां खामोश...गांव के लोग मायूस हैं...और अभी तुरंत ही विधवा हुई ये महिला बेसुध...सूखे से उपजी गरीबी ने इसका सुहाग इससे छीन लिया...अपने पति की लाश के पास बैठी शायद यही सोच रही है कि आखिर अब अपने बच्चों की परवरिश कैसे करेगी...शायद भूखमरी के चलते ही..पांडेय भूइयां की मौत हो गई...उसके हिस्से पड़ा राहत का 10 किलो अनाज, उसकी मौत के बाद आज उसके घर पहुंचा है... सुखे ने खेत की हरियाली छीन ली...पेट की भूख घर का अनाज खा गई...बेगार हुए किसान बेकार हो गए...घास का बना हलुआ मां बच्चों को खिलाना चाहती है..जो थोड़े बड़े हैं वो चुपचाप खाने लगते हैं..शायद आदत पड़ चुकी है..लेकिन छोटा ठुनकने लगता है...लोग कहते हैं सबकुछ सूखे ने निगल लिया...और सरकारी मदद का दस किलो अनाज मांगने पर दस दस तरह के कानून बताए जाते हैं... दिनकर जी ने कहा था कि भूख जब बेताब हुई तो स्वाधीनता की ख़ैर नहीं...कुछ ही दिनों पहले पलामू के हजारों लोगों ने अनाज के गोदाम पर धावा बोल दिया...क्या करें भूख बर्दाश्त नहीं होती...हालांकि अधिकारी कहते हैं कि गांव गांव में अनाज बांटे जा रहे हैं...ये एक नज़ारा पलामू का है..जहां भूख से मौत हो रही है...बच्चे बिलख रहे हैं..लोग मायूस हैं...लेकिन अधिकारी संतुष्ट हैं....इस रिपोर्ट के लिए पलामू से नीरज कुमार का साभार....

Saturday, October 2, 2010

जहां महिलाएं करती हैं तर्पण और पिंडदान...

अभी तक शायद आप यही जानते हैं कि शास्त्रों में सिर्फ पुरुषों को ही पिंडदान और तर्पण का अधिकार दिया गया है। लेकिन मिरजापुर के विंध्य क्षेत्र में मातृ नवमी के दिन महिलाएं अपने पितरों का तर्पण करती हैं। मान्यता है कि वनवास के दौरान माता सीता ने सीताकुंड पर तर्पण किया था। तब से लेकर आज तक ये परपंरा चली आ रही है.... हाथ जोड़े पूजा कर रही ये महिलाएं अपनो पितरों का तर्पण कर रही है...सुनकर आपको हैरानी ज़रुर हो रही होगी लेकिन ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। मिर्जापुर के विंध्य क्षेत्र में मातृनवमी के दिन महिलाएं अपने पितरों का तर्पण करती हैं...कहा जाता है कि वनवास के दिनों माता सीता ने काशी और प्रयाग के मध्य स्थित इसी जगह पर अपने पितरों का तर्पण किया था...तभी से इस परंपरा की शुरूआत हुई। शास्त्रों के अनुसार पुत्रों को ही तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार हैं..कहते हैं सबसे बड़े या सबसे छोटे पुत्र से अर्पित जल ही पूर्वजों तक पहुंचता है.लेकिन सीताकुंड के इस पावन धाम पर यूपी, बिहार और मध्यप्रदेश के साथ ही देशभर से महिलाएं अपने पितरों को तर्पण करने आती हैं...अपना देश परंपराओं और मान्यताओं का देश हैं...इन्ही मान्यताओं और परंपराओं की एक बानगी यहां भी देखने को मिल रही है जो सदियों से चली आ रही है... इस रिपोर्ट के लिए मिर्जापुर से नितिन अवस्थी का सहयोग...

भूख के चलते मौत हुई या ग़रीबी के...?