Thursday, September 1, 2011

उसकी याद आज भी ज़ेहन में बरकरार है

वो प्यारी सी लड़की, वो कंचन सी काया
है झील सी आंखों में सागर समाया
वो एक फूल है या फूलों की कली है
वो है चुलबुली पर वो कितनी भली है
उसके जुल्फ़ है काले बालल घनेरे
उसे सोचता उठकर नित नित सवेरे
उसके होठ है या गुलाबों की लाली
जिसे देखता अपलक बगिया का माली
माली है पर तु नज़र ना लगाना
इसे देखेगा सारा गुलशन ज़माना
उसके दांत है या हैं मोती चमकते
अगर लोग देखें तो चेहरे झलकते
सांसो में उसके है सुरभि का जादू
परिमल महकता है होकर बेकाबू
वो है एक परी या है परियों की रानी
मैं कागज़ की कश्ती वो बारिश की पानी
सागर सी आंखों में मस्ती मचलती,
कभी डुबती, बचती कश्ती संभलती
वो है एक ख्याल, आत्मचिंतन भी है
वो है मनचली, आत्ममंथन भी है
वो मेरे लिए हर संकल्प है
नहीं उसके बिना कोई विकल्प है
वो एक आवाज़ है, अजब अंदाज है
उसके बिना सूना हर साज है
वो मधुर संगीत है या कि शहनाई है
उसके लिए तन्हा तन्हाई है
वो आत्म है आत्मदर्पण भी है
मन का आवेग अर्पण भी है
उसके लिए मेरी बेचैन आंखे
उसके लिए आत्म-समर्पण भी है
है इक इक अदा उसकी कितनी निराली
जो उसको देखे बन जाए सवाली
वो कभी एक प्यारी बच्ची सी लगती
कभी ज़िंदगी एक सच्ची सी लगती
वो जो भी है यारों मुझे क्या पता
पर वो शायरी बहुत अच्छी सी लगती
सुंदरता की है वो अंतिम निशानी
जैसे हीरे की दानिश पर मोती सा पानी
वो बस एक शायरी है या कि पूरी गज़ल
जो भी है वो मेरे मन का महल है....


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