Wednesday, September 7, 2011

मैं दिल्ली हूं
हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली
बिना कोई भेदभाव किए
सदियों से मैं सबको संभालती रही हूं
हर एक की चोट पर
मरहम लगाती रही हूं
मैं कभी सोती नहीं
हर वक्त जगती रहती हूं
बिना थके, बिना रुके
चौबीस घंटे चलती रहती हूं
मुझमें ग़जब की रवानी है...
लेकिन आज मेरी छाती घायल है
आज मेरी आंखों में पानी है..
दर्जनों बार मुझ पर हमले हुए
कई बार मेरा सीना चाक हुआ
जब जब आतंकियों ने जलाना चाहा मुझको
तब तब दहशतगर्दों का मंसूबा ख़ाक हुआ
आज दर्द है मुझे, आज मुझे पछतावा है
मैने अपनो को खोया है, मेरे सैकड़ों बच्चे घायल हैं
मुझ पर खेली गई खून की होली
मेरे संसद पर भी चली गोली
फिर भी न जागे हुक़्मरान मेरे
और न जागे सिपाही मेरे
आखिर ये कैसी नादानी है...
आज मेरी छाती घायल है
आज मेरी आंखों में पानी है

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