
अब अपना गांव वो पुराना नहीं लगता...
किसी पिकनिक स्पॉट सा वो मौसियाना नहीं लगता
शादियां भी तो अब होती हैं हड़बड़ाहट में
बरगद के नीचे वो शामियाना नहीं लगता।
पोखरी गांव की आबादी में तब्दील हुई,
ताल बंटवारे के खेतों में हलाल हुआ
कोट कटकर जब परधान की दालान बनी
सुना कि इसको लेकर थोड़ा गांव में बवाल हुआ..
चार जो पेड़ थे पीपल के चारों कोनों पर..
हां वहीं पेड़ जिसमें लोग जल चढ़ाते थे
एक वो नीम का भी पेड़ था जिसके नीचे,
मुंशी जी डंडा लेकर हमे क..ख..ग..पढ़ाते थे..
कट गए पेड़ वो सारे कि एक झटके में..
बचपन में देखते जिस पर कुछ मिट्टी के मटके में
जानते हैं कि हुआ हश्र क्या उन पेड़ों का..
जल गए धूंधू कर सुनील सिंह के भट्टे में..
ऐसा नहीं था कि उन पेड़ों की उम्र पूरी थी..
या वो पेड़ गांव की विकास को अखरते थे..
ये अलग बात है कि बुढ़े बुढ़िया भी यूं बस चुप ही रहे..
शायद कुछ लोग थे जो सुनील सिंह से डरते थे..
....
....क्रमशः जारी है...
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