
मेरे शहर ने मेरी पहचान मुझसे छीन लिया..
और..नई चलन ने मेरी ज़ुबान मुझसे छीन लिया..
पेट की भूख ने कुछ इस क़दर दस्तक दे दी..
ग़ुम मुस्कान हुई...और ईमान मुझसे छीन लिया..
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नई पीढ़िया ग़ुम हुई नए तरानों में...
पुराने किस्से नहीं रह गए अफ़सानों में..
नानी की कहानियों की बात भी अब जाने दीजै,
गांव के बोल भी अब खो गए वीरानों में..
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.....क्रमशः जारी है....
2 comments:
awesome vikas bhai...too good
जिन्दगी के झंझावात की सहज, सरल प्रस्तुती....बेहतरीन, पठनीय ब्लॉग. बहुत बढ़ियाँ विकास !
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